Saraswati Vandana (Ya Kundendu Tushar Har Dhawla) Lyrics PDF Download
नमस्कार दोस्तों, यदि आप किसी भी स्कूल में पढ़ते हो, तो आप भी सरस्वती वंदना (Saraswati Vandana) को जरूर बोलते होंगे, प्रत्येक स्कूल में ‘या कुन्देन्दु तुषारहारधवला’ Vanadana कराई जाती है, इसमें उनके सभी प्रकार के गुणों का वर्णन किया गया है.
माता सरस्वती देवी जी को विद्या की देवी कहा गया. ऐसा कहा जाता है, कि जो व्यक्ति Saraswati Mata की पूजा करता है, उसे पढ़ाई में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होती है.
यदि आप भी चाहते हैं, कि आपको कभी भी पढ़ाई में व्यवधान ना हो, तो आपको इन संस्कृत श्लोकों को जरूर बोलना चाहिए.
हिंदू धर्म में विद्या की देवी माँ शारदे का विशेष स्थान है, विशेष रुप से विद्या भारतीय अखिल भारतीय स्कूलों जैसे सरस्वती शिशु मंदिर, विद्या मंदिर, केंद्रीय विद्यालय आदि जगह सुबह वंदना के समय श्लोकों को बोला जाता है.
इसलिए यदि आपके विद्यालय में भी Vandana होती हैं, तो आपके पास इस shlok का संग्रह जरूर होना चाहिए.
सरस्वती देवी वंदना
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युत शङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ 1 ॥
Ya Kundendu Tusharahara Dhavala Ya Shubhra Vastravrita
Ya Veena Varadanda Manditakara Ya Shveta Padmasana
Ya Brahmachyuta Shankara Prabhritibhir Devaih Sada Pujita
Sa Mam Pattu Saravatee Bhagavatee Nihshesha Jadyapaha॥1॥
प्रथम श्लोक का अर्थ – विद्या की देवी सरस्वती माता, जो कुंद के पुष्प, चंद्रमा, हिमराशि तथा मोती के हार के समान धवल रंग वाली है. तथा सफेद रंग के वस्त्र धारण किए हुए हैं, जिनके हाथों में वीणा दंड शोभा बढ़ाता है, तथा जिन्होंने सफेद कमलों को आसन बनाया हुआ है. तथा ब्रह्मांड के रचयिता ब्रह्मा, विष्णु और शिव शंकर आदि उच्च देव द्वारा सदैव पूजी जाती है. तथा सभी प्रकार की जड़ता मूर्खता अज्ञानता को दूर करती है, वह सरस्वती माता हमारी रक्षा करें.
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा – पुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरी भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥ 2 ॥
Shuklam Brahmavichara Sara, Parmamadyam Jagadvyapineem
Veena Pustaka Dharineema Bhayadam Jadyandhakarapaham।
Haste Sphatikamalikam Vidadhateem Padmasane Samsthitam
Vande Tam Parmeshvareem Bhagwateem Buddhipradam Sharadam॥2॥
द्वितीय श्लोक का अर्थ – जो शुक्ल वर्ण वाली है, तथा इस संपूर्ण चर तथा अचर जगत में उपस्थित हैं. तथा इन्हें आदिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है. परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार के रूप में परम उत्कर्ष धारण की हुई है. इसके अतिरिक्त यह सभी भय एवं डर से अभयदान भी देती हैं. सभी प्रकार के अज्ञान को दूर करती हैं, तथा इनके हाथों में वीणा एवं पुस्तक है. स्फटिक की माला धारण की हुई है. और पद्म के आसन पर विराजमान है, तथा सभी को बुद्धि प्रदान करती हैं, सभी प्रकार के ऐश्वर्या से अलंकृत हैं. ऐसी भगवती शारदा अर्थात सरस्वती देवी जी की मैं वंदना करता हूं.
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